छत्रपति शिवाजी - Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra Marathi Pdf Book - By Pt. Mata

छत्रपति शिवाजी- Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra Marathi Pdf Book free

छत्रपति शिवाजी जीवन चरित्र पुस्तक (Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra Book) | वीरता, नेतृत्व और स्वराज्य की प्रेरणादायक गाथा। जानिए शिवाजी महाराज के संघर्ष, युद्धनीति और महान शासन के बारे में। 📖✨

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Book Details / किताब का विवरण 

Book Nameछत्रपति शिवाजी / Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra
AuthorPt. Mata
Languageमराठी / Marathi
Pages132
QualityGood
Size32 MB

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Table of Contents

Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra Book

छत्रपति शिवाजी केवल एक महान योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वे कूटनीति, धर्मनिष्ठा और सामाजिक न्याय के भी प्रतीक थे। उन्होंने एक ऐसे समय में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों और मुगलों का शासन था। इस पुस्तक में उनके जन्म से लेकर उनकी वीरगति तक की यात्रा को विस्तार से समझाया गया है।

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छत्रपति शिवाजी केवल एक महान योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वे कूटनीति, धर्मनिष्ठा और सामाजिक न्याय के भी प्रतीक थे। उन्होंने एक ऐसे समय में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों और मुगलों का शासन था। इस पुस्तक में उनके जन्म से लेकर उनकी वीरगति तक की यात्रा को विस्तार से समझाया गया है।

1. शिवाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन

छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोसले बीजापुर के आदिलशाही दरबार में एक महत्वपूर्ण सरदार थे, जबकि उनकी माता जीजाबाई एक धर्मपरायण और संस्कारी महिला थीं। जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से ही रामायण, महाभारत और अन्य वीरगाथाओं की शिक्षा दी, जिससे उनमें स्वराज्य की भावना बचपन से ही उत्पन्न हुई।

शिवाजी को बचपन से ही युद्धकला, घुड़सवारी और प्रशासनिक कार्यों की शिक्षा दी गई थी। उन्होंने अपने गुरु दादाजी कोंडदेव से राजनीति और सैन्य रणनीति की बारीकियां सीखीं। यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक युवा बालक ने अपने बलबूते पर एक शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी।

2. हिंदवी स्वराज्य की स्थापना

शिवाजी महाराज ने मात्र 16 वर्ष की आयु में अपने पहले किले तोरणा दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई दुर्गों पर विजय प्राप्त की, जिससे मुगलों और आदिलशाही सुल्तानों की चिंता बढ़ गई। इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि कैसे शिवाजी ने एक छोटी सी सेना के साथ बड़े-बड़े शासकों को पराजित किया।

उनका स्वराज्य का सिद्धांत बहुत स्पष्ट था – एक ऐसा राज्य, जहाँ जनता स्वतंत्र हो, शोषण से मुक्त हो और हिंदू संस्कृति को पुनः जीवंत किया जाए। उन्होंने जनता के कल्याण के लिए प्रशासनिक सुधार किए और एक संगठित शासन प्रणाली विकसित की।

(1) कूटनीति और सैन्य रणनीति

शिवाजी महाराज की सैन्य रणनीति अद्भुत थी। वे गणिमी कावा (गुरिल्ला युद्ध नीति) के जनक माने जाते हैं। इस रणनीति के तहत वे दुश्मनों पर अचानक हमला कर उन्हें पराजित करते और फिर जंगलों व पहाड़ों में छिप जाते।

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उन्होंने अपनी सेना को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट दिया, जिससे वे तेज़ी से हमला कर सकते थे और बिना ज्यादा हानि के पीछे हट सकते थे। यह रणनीति मुगलों और आदिलशाही सेना के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई।

(2) धर्म और न्यायप्रियता

शिवाजी केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा भी थे। उन्होंने कभी भी किसी भी धर्म के लोगों पर अन्याय नहीं किया। वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनकी सेना में मुस्लिम योद्धाओं को भी महत्वपूर्ण पद दिए गए थे।

इस पुस्तक में शिवाजी की लोकप्रियता और न्यायप्रियता पर विशेष ध्यान दिया गया है। उनके द्वारा लागू की गई राजस्व नीति, कर प्रणाली और प्रशासनिक व्यवस्था का भी उल्लेख किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि वे एक कुशल प्रशासक थे।

3. प्रमुख युद्ध और विजय अभियान

शिवाजी महाराज के जीवन में कई युद्ध लड़े गए, जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं। यह पुस्तक इन युद्धों का विस्तृत विवरण देती है और यह भी बताती है कि कैसे उन्होंने शक्तिशाली शत्रुओं को हराया।

(1) अफजल खान का वध

अफजल खान, जो बीजापुर का एक क्रूर सेनापति था, उसे शिवाजी को मारने के लिए भेजा गया था। लेकिन शिवाजी ने चतुराई से अपनी रक्षा की और अफजल खान का वध कर दिया। यह घटना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने उन्हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया।

(2) सूरत की लूट

1664 में शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के सबसे धनी शहर सूरत पर आक्रमण किया। उन्होंने यह हमला इसलिए किया क्योंकि मुगलों ने दक्षिण भारत में उनके राज्य पर आक्रमण किया था। इस अभियान से शिवाजी ने न केवल आर्थिक शक्ति हासिल की, बल्कि मुगलों के मन में डर भी बैठा दिया।

(3) पुरंदर की संधि और आगरा कैद

1665 में शिवाजी को मजबूरी में मुगल सेनापति जयसिंह के साथ पुरंदर की संधि करनी पड़ी। इस संधि के अनुसार, उन्हें कई किले मुगलों को सौंपने पड़े। बाद में उन्हें और उनके पुत्र संभाजी को आगरा में औरंगजेब के दरबार में बुलाया गया, जहाँ उन्हें धोखे से कैद कर लिया गया।

लेकिन उनकी साहसिक आगरा से पलायन की घटना भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण है। उन्होंने एक चतुर योजना बनाकर, साधु के वेश में निकलकर मुगलों को चकमा दे दिया और सुरक्षित महाराष्ट्र लौट आए।

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4. छत्रपति की उपाधि और अंतिम दिन

1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें विधिवत छत्रपति की उपाधि दी गई। उन्होंने एक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, जहाँ हर जाति और धर्म के लोगों को समान अधिकार प्राप्त थे।

1680 में, 50 वर्ष की आयु में, शिवाजी महाराज का देहांत हुआ। यह पुस्तक उनके अंतिम दिनों के बारे में भी विस्तार से बताती है और यह दर्शाती है कि उनके जाने के बाद भी उनका स्वराज्य जीवित रहा और उनके पुत्र संभाजी महाराज ने इसे आगे बढ़ाया।

5. निष्कर्ष: प्रेरणादायक व्यक्तित्व

‘छत्रपति शिवाजी जीवन चरित्र’ (Chhatrapati Shivaji Jeevan Charitra Book) केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक ग्रंथ है। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि धर्म, साहस, नीति और परिश्रम से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है

शिवाजी महाराज का जीवन देशभक्ति, रणनीति, नीतिनिपुणता और समाज कल्याण का एक आदर्श उदाहरण है। उन्होंने न केवल मुगलों और आदिलशाहियों से संघर्ष किया, बल्कि एक सशक्त प्रशासनिक व्यवस्था भी विकसित की।

यदि कोई व्यक्ति नेतृत्व, वीरता और नीति में रुचि रखता है, तो यह पुस्तक उसके लिए अवश्य पठनीय है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा राजा वही होता है, जो अपने प्रजा की रक्षा करे और उन्हें एक उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाए

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र हर भारतीय के लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत है।

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