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निसर्गयात्रा - एक चिमुकला यात्रिक
अब जो नए पंख खिले हैं, उनकी परछाइयाँ पीली हैं होत्या। वे शांत थे, वे नरम थे घास के मैदानों के साथ, नदी उनका रंग लकड़ी की बालू के समान, आर्द्रभूमि में झाड़ियों के समान है यह एक संयोग था उनका रंग ऐसा था कि लंबी यात्रा के लिए ये पंछी किसी की नजर में नहीं होते
त्यांना संपूर्णपणे नवी पिसं फुटली आणि अंगात भरलेला आळसटपणा निघून गेला. शरीरात पुन्हा चैतन्य सळसळू लागलं , उत्कंठा वाढू लागली . आता नर आणि मादीला इतरांच्या जवळीकीची ओढ वाटू लागली . लवकरच अशा कित्येक जोड्या एकत्र आल्या . धोबी पक्ष्यांचा हा समूह आता एकत्रितपणे इकडे तिकडे हिंडू लागला . मधूनच अस्वस्थपणे तो सैरभैर उडत होता . मध्येच जमिनीकडे झेपावत होता , पुन्हा उंच उडत होता . घरटया भोवतीचं संकुचित जग संपत आलं होतं . क्षितिजं विस्तारीत होती . नजरा दूरदूरचे प्रदेश धुंडाळीत होत्या . रात्री हे सगळे पक्षी एकत्रितपणे लांब दांड्याच्या उंच गवतात निवाऱ्यासाठी जमत
खुले आसमान की ऊंचाई के साथ, ऊंची हवा के और उन्हें एक विशाल नक्षत्र की उपस्थिति का आभास हुआ। अब वे एक लय में, एक दिशा में उड़ने लगे। दक्षिण दिशाएँ उनके द्वारा चिह्नित की गईं, सितारों ने उन्हें दिशाएँ दिखाईं होत्या। साढ़े तीन से चार हजार मील (छह हजार किलोमीटर) यात्रा शुरू हो चुकी थी।